लेखनी कहानी -17-Oct-2022... धनतेरस...
माँ.... कब आएंगे बाबा...!
बस थोड़ी देर में आते ही होंगे...। आज तुझे बाबा की इतनी चिंता क्यूँ हो रहीं हैं पिंकू..।
अरे माँ आज बाबा मुझे मेला दिखाने लेकर जाने वाले हैं ना..।
मेला... कौनसा मेला... मुझे तो तेरे बाबा ने कुछ नहीं बताया...।
अरे कल बोला था मुझे बाबा ने की हम सब बाहर जाएंगे.. मेला देखेंगे.. खाना भी बाहर ही खाएंगे...।
तु भी ना पिंकू.... अच्छे से जानता हैं अपने बाबा को... साल में दस बार ये सब बोलते हैं.. लेकिन चलते कभी नहीं हैं...।
नहीं मां आज पक्का चलेंगे... उन्होंने मुझसे वादा किया था...।
ठीक हैं कर तु इंतजार अपने बाबा का...।
करीब एक घंटे बाद पिंकू के पिताजी घर आए... तब तक शाम के सात बजे चुके थे..।
उनके घर में घुसते ही पिंकू भागता हुआ उनके गले से लगा.... ओर बोला :- बाबा... बाबा आप आ गए... मैं तो कबसे तैयार हूँ... चलो ना बाबा मेले में चलते हैं...।
मेला.... कौनसा मेला....क्या बोल रहा हैं पिंकू...।
इतने में उसकी माँ किचन से बाहर आती हुई बोलीं :- बस... घुम आया मेला... मैं तो कबसे कह रहीं थीं.. पर तु माने तो ना... चल अभी दाल भात बनाया हैं... वो खा ओर जाकर सो जा..।
पिंकू अपना सा मुंह लेकर कमरे में चला गया...।
उसके जाते ही सुलक्षणा बोली :- जब वादा पूरा नहीं कर सकते हो तो करते क्यूँ हो...। दोपहर से राह देख रहा हैं... तैयार होकर पूरे मोहल्ले में ढिंढोरा पीट कर आया हैं...।
हां हां ठीक हैं... अभी तुम शुरू मत हो जाओ... जाओ जाकर पानी लेकर आओ.... ओर फिर तुम भी तैयार हो जाओ... चलते हैं आज मेले में...।
क्या कहा आपने...!
हां सच बोल रहा हूँ... मालिक ने दिवाली का बोनस दिया हैं... मुझे याद नहीं था इसलिए पिंकू को ऐसा बोल दिया.. पर त्यौहार में बच्चा ऐसे उदास रहें....। तु जाकर तैयार हो... मैं उसे मनाकर आता हूँ..।
लेकिन... ये रुपये तो मकान की किश्त में देने हैं ना..!
हां.. पता हैं... पर थोड़ा सा खर्च कर देंगे अपने पिंकू पर..उसको खिला देंगे बाहर से... हम वापस आकर दाल भात खा लेंगे... वरना वो सुबह तक खराब हो जाएंगे..।
हां सही हैं पिंकू तो खुश हो जाएगा..।
आप उसको लेकर आओ मैं दो मिनट में आती हूँ..।
थोड़ी देर में ही तीनो मेला देखने निकल गए जो उनके मोहल्ले से कुछ दुरी पर ही लगा हुआ था..। आज धनतेरस का त्यौहार था..। सड़कों पर रंगबिरंगी लाइटे देखते ही बनतीं थीं..। चारों तरफ़ से मिठाइयों की महक और पटाखों की गूंज पिंकू को रोमांचित कर रहीं थीं..।
उत्साहित होकर पिंकू पूछ बैठा :- बाबा आज इतनी भीड़ क्यूँ हैं... और ये आसमान में कैसी रोशनी चमक रहीं हैं... ।
आज धनतेरस का त्यौहार हैं बेटा... दिवाली से पहले आता हैं..।
दिवाली... हां याद आया.. आप उस दिन घर पर हर बार मिठाई लेकर आते हैं ना...! वही ना बाबा..!
हां... वहीं...। आज धनतेरस पर लोग नई नई चीजें खरीदते हैं... पटाखे चलाते हैं... खुशियाँ मनाते हैं... मिठाइयां बनाते हैं..।
बाबा हम कौनसी चीज खरीद रहे हैं आज...।
पिंकू की बात सुन उसके माँ बाबा एक दूसरे का चेहरा देखने लगे...।
बोलो ना बाबा हम क्या खरीद रहे हैं..!
सुलक्षणा उसके सवाल का जवाब देते हुवे बोलीं :- हम इस दुनिया की सबसे मंहगी चीज खरीद रहें हैं बेटा.... तुम्हारी खुशी... तुम्हारी हंसी...।
सुलक्षणा की बात सुन पिंकू खुशी से ओर ज्यादा झूमने लगा..। कुछ देर में वो मेले वाली जगह पर पहुंचे ओर पिंकू ने वहा बहुत मस्ती की..।
सुलक्षणा उसको देख अपने पति से बोली :- इस बार की दिवाली हमारे लिए सच में खुशियाँ लेकर आई हैं..। कितना खुश हैं आज मेरा बच्चा..।
पिंकू जैसे ना जाने कितने बच्चे ऐसे ही इन छोटी छोटी खुशियों में अपनी दिवाली मना लेते हैं.... सच में ये ही सही ओर सच्ची दिवाली हैं...।
Khan
25-Oct-2022 07:30 PM
Nice 👍
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𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
23-Oct-2022 11:39 PM
बहुत खूब मेम👌👌 बहुत अच्छी कहानी है। प्रेम और पारिवारिक पर आधारित!
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Naresh Sharma "Pachauri"
23-Oct-2022 04:17 PM
अति सुन्दर
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